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Sunday, October 27, 2019

बैंक जो सूद दे रही वो क्या सूद (ब्याज) है?

*🔮बैंक जो सूद दे रही वो क्या सूद (ब्याज) है?🔮*

✏सवाल :-
 बैंक में जो अकाउंट होता है उसमें बैंक कुछ न कुछ इंट्रेस्ट (ब्याज) देती है जो अकाउंट में जमा हो जाता है।हम अपनी हलाल कमाई भी उसी अकाउंट में रखते हैं।इसका क्या हुक्म है।
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📝जवाब :-
अस्ल जवाब से पहले चन्द बातें समझ लें तो अस्ल मस्अला आसानी से समझ में आएगा।काफ़िरों की तीन क़िस्में हैं
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(1)"ज़िम्मी" यह वह काफ़िर है जो दारुल इस्लाम में रहता हो और बादशाहे इस्लाम ने उसकी जानो माल की हिफ़ाज़त अपने ज़िम्मे लेली हो।
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(2)"मुस्तामिन" यह वह काफ़िर है,जो कुछ दिनों के लिये अमान लेकर दारूल इस्लाम में आगया हो।
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(3)"हरबी" जो न ज़िम्मी हो और न मुस्तामिन

 👉  हिन्दुस्तान के काफ़िर न तो ज़िम्मी हैं और न मुस्तामिन तो ज़ाहिर हो गया कि वह "हरबी" हैं_____
जैसा कि सैयिदुल फ़ुक़हा अल्लामा शैख़ अहमद यानी मुल्ला जीवन रहमतुल्लाहि तआला अलैह फ़रमाते हैं
यानी "यहां के काफ़िर तो हरबी ही हैं इस बात को पढ़े लिखे लोग ही समझते हैं"
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(तफ़्सीराते अहमदिय्यह स.300)

     और हरबी काफ़िर और मुसलमान के दरमियान जो लेन दैन हो वह सूद नहीं होता_______
 जैसाकि हदीसे पाक में है,यानी "काफ़िर और मुसलमान के दरमियान (लेन दैन)सूद नहीं होता
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(हिदायह अख़ीरैन स.70)

  👉  अब मस्अला बख़ूबी वाज़ेह होगया कि हिन्दुस्तान की वह बैंकें जो सिर्फ़ ग़ैर मुस्लिमों की हों उनमें रूपया जमा करने पर बनाम इंट्रेस्ट जो ज़्यादा रक़म मिलती है वह "सूद" नहीं है, बल्कि एक जाइज़ माल है जो किसी ग़ैर मुस्लिम ने आपको अपनी मरज़ी से दिया है।
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अब यह ज़्यादह दी गई रक़म किसी के सूद (ब्याज)कहने से सूद नहीं होजाएगी।और लेने वाले को यह रक़म सूद की नियत से नहीं लेना चाहिये।
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